कर्म करो फल की इच्छा मत करो यह भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं।
दोस्तों इस दुनिया में कर्म को मानने वाले लोग कहते हैं भाग्य कुछ नहीं होता और भाग्यवादी लोग कहते हैं किस्मत में जो लिखा होगा, वह होकर रहेगा। यह विषय अनंत काल से बहस का विषय बना हुआ है। जीवन में कुछ पाना है तो मेहनत तो करनी ही पड़ेगी। मंजिल उन्हीं को मिलती है जो इसकी और कदम बढ़ाते हैं। दोस्तों इस विषय को एक कहानी से समझते हैं और भगवान कृष्ण कर्म के बारे में क्या कहते हैं?
पुराने समय की बात है एक महान संत हुए जिनका नाम ज्ञान भट्ट और उनके दो शिष्य थे एक का नाम कर्म भट्ट और दूसरे का नाम भाग्य भट्ट था। एक दिन कर्म भट्ट और भाग्य भट्ट के बीच बहस छिड़ गई के कर्म बड़ा है या भाग्य। कर्म भट्ट कर्म को बड़ा मानता था लेकिन भाग्य भट्ट भाग्य को बड़ा मानता था। इन दोनों के बीच बहस इतनी बढ़ गई के उन दोनों को अपने गुरु के पास जाकर इसका उत्तर मांगना पड़ा। उनके गुरु ज्ञान भट्ट ने कहा मैं इसका उत्तर तुम्हें जरूर दूंगा, अगली सुबह तुम दोनों मेरी कुटिया के आगे मिलना। ऐसा कहकर ज्ञान भट्ट ध्यान लगाने चले गए। अगली सुबह कर्म भट्ट और भाग्य भट्ट सूर्य उदय होने के बाद अपने गुरु की कुटिया के आगे खड़े हो गए। जब उनके गुरु कुटिया से बाहर आए तब उन्होंने अपने शिष्यों को गहरे कमरे में बंद कर दिया। उस कमरे में रोशनी की एक किरण भी नहीं दिख रही थी। एक दिन बीता, दो दिन बीते उन दोनों की भूख और प्यास से हालत खराब हो गई।
भाग्य भट्ट ने सोचा जो मेरे भाग्य में लिखा है, वह तो होकर ही रहेगा उसको तो मैं बदल नहीं सकता इसलिए मैं गोविंद गोविंद जपता हूं। ऐसा कहकर भाग्य भट्ट ने गोविंद गोविंद जपना शुरू कर दिया। लेकिन कर्म भट्ट को यह मंजूर नहीं था उसने सोचा मुझे कर्म करना पड़ेगा नहीं तो मैं भूखा मर जाऊंगा। इसके बाद कर्म भट्ट खड़ा हो जाता है और खाने पीने की तलाश शुरू करता है। कर्म भट्ट कभी किसी चीज से टकरा जाता था और कभी उसके पांव में चोट लग जाती थी मगर वह थका नहीं, हारा नहीं और खोजता रहा। आखिर में उसको एक मटका मिला जब उसने मटके के अंदर हाथ डाला तो उसके अंदर चने मिले। चनों को पाकर वह इतना खुश हो गया जैसे कि अमृत मिल गया हो। इसके बाद वह बैठकर चने खाने लगा, चना खाते खाते कभी उसके मुंह में कंकड़ आ जाते थे। वह इन कंकड को भाग्य भट्ट को दे दिया करता था।
अगली सुबह जब उनके गुरु ने अंधेरे कमरे का दरवाजा खोला तो कर्म भट्ट का पेट अच्छे से भरा था लेकिन भाग्य भट्ट भूखा था। कमरे का दरवाजा खुलने के कारण जब उस कमरे में रोशनी आई तब कर्म भट्ट के होश उड़ गए। कर्म भट्ट भाग्य भट्ट जो कंकड़ समझ कर दे रहा था वह कंकड़ नहीं थे वह सब हीरे थे। दोस्तों इस कहानी का अर्थ हर इंसान के लिए अलग-अलग हो सकता है, जैसे बारिश का पानी सभी पेड़ पौधों पर एक साथ गिरता है फिर भी किसी पेड़ में लाल फूल आते हैं और किसी पेड़ में पीले फूल आते हैं।
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अब हम बात करते हैं कर्म बड़ा या भाग्य। कर्म और भाग्य दोनों एक दूसरे से संबंधित हैं। उन्होंने कोई छोटा या बड़ा नहीं है। आप अच्छे कर्म नहीं करोगे तो आपका भाग्य अच्छा नहीं बनेगा, और आपका भाग्य अच्छा नहीं होगा तो आप करो ठीक से नहीं कर पाओगे।
भगवत गीता के अध्याय 3 के आठवें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं “ अपना नित्य कर्म करो क्योंकि कर्म ना करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है कर्म के बिना शरीर का निर्वाह नहीं हो सकता।” दोस्तों आपको जो कहानी सुनाई थी उसमें भी कर्म भट्ट हो या भाग्य भट्ट दोनों को कर्म तो करना ही पड़ा। एक ने गोविंद गोविंद पुकारा तो दूसरे ने खाने की तलाश की। कर्म करने से कोई भी मुंह नहीं मोड़ सकता और आपने कर्म किया है तो उसका फल अवश्य मिलेगा।
आप सोच रहे होंगे कि भाग्य भक्तों को इतना बड़ा फल क्यों मिला। इसके लिए भगवत गीता के 18 वे अध्याय के 66 श्लोक में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि संपूर्ण धर्म का आश्रय छोड़कर क्यों केवल मेरी शरण में आजा मैं तुझे पापों से मुक्त कर दूंगा तू चिंता मत कर।
दोस्तों इस कहानी के निष्कर्ष के बारे में बात करते हैं। कर्म या भाग्य दोनों में से कोई बड़ा या छोटा नहीं होता। जीवन सफल होने के लिए कर्म और भाग्य दोनों चावियो की जरूरत पड़ती है जैसे बैंक के लॉकर की एक चाबी हमारे पास रहती है और एक चाबी मैनेजर के पास रहती है, ऐसे ही हमारे पास कर्म की चाबी है और भगवान के पास भाग्य की चाबी है जब तक यह दोनों चाबियां सफलता के ताले में नहीं जाएंगी तब तक हम को सफलता नहीं मिलेगी। इसलिए हमको कर्म तो करना ही चाहिए और उन सभी कर्मों को भगवान को अर्पित कर देना चाहिए यही निष्काम कर्म योग का सिद्धांत है जिसे भगवान कृष्ण भगवत गीता में देते हैं।