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कृष्ण वाणी भाग–3,अमृत वचन,Krishna Vani,Success Mantra

अच्छे लोगों की कृष्ण परीक्षा बहुत लेता है परंतु साथ नहीं छोड़ता और बुरे लोगों को कृष्ण बहुत कुछ देता है परंतु साथ नहीं देता।

जिंदगी में दो लोगों का होना बहुत जरूरी है एक कृष्ण जो ना लड़े फिर भी जीत पक्की कर दे दूसरा कर्ण जो हार सामने हो फिर भी साथ ना छोड़े।

तू करता वही है जो तू चाहता है, होता वही है जो मैं चाहता हूं, तू कर वही जो मैं चाहता हूं फिर होगा वही जो तू चाहता है।

रोते हुए कृष्ण ने कहा मैं तो सब की सुनता हूं पर मेरी कौन सुनता है, इंसान गलत कार्य करते समय दाएं-बाएं, आगे- पीछे, चारों तरफ देखता है बस ऊपर देखना भूल जाता है।

श्री कृष्ण कहते हैं जन्म लेने वाले की मृत्यु उतनी ही निश्चित होती है जितने की मृत्यु होने वाले के लिए जन्म लेना इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो।

भरोसा अगर खुद पर रखो तो ताकत बन जाता है और दूसरों पर रखो तो कमजोरी।

आप कब सही थे इसे कोई याद नहीं रखता है लेकिन आप कब गलत थे इसे सब लोग याद रखते हैं।

मैं किसी के भाग्य का निर्माण नहीं करता और ना ही किसी को कर्मों का फल देता हूं।

मनुष्य कितना भी गोरा क्यों ना हो परंतु उसकी परछाई सदैव काली होती है। मैं श्रेष्ठ हूं, यह आत्मविश्वास है लेकिन “सिर्फ मैं ही श्रेष्ठ हूं” यह अहंकार है।

श्री कृष्ण कहते हैं तुम्हारा क्या है जो तुम रोते हो, तुम क्या लाए थे जो तुमने खो दिया, तुमने क्या पैदा किया था जिसका नाश हो गया। ना तुम कुछ लेकर आए थे ना कुछ लेकर जाओगे, जो लिया यहीं से लिया, जो दिया यहीं पर दिया।

यदि आप किसी के साथ मित्रता नहीं कर सकते तो उसके साथ शत्रुता भी नहीं करनी चाहिए।

जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, जो होगा वह भी अच्छा होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो, भविष्य की चिंता ना करो वर्तमान चल रहा है इसी का आनंद लो।

राधा ने श्री कृष्ण से पूछा ‘प्रेम’ का असली मतलब क्या होता है श्री कृष्ण ने हंसकर कहा “जहां मतलब होता है वहां प्रेम कहां होता है।”

प्रेम एक ऐसा अनुभव है जो मनुष्य को कभी परास्त नहीं होने देता और घृणा एक ऐसा अनुभव है जो मनुष्य को कभी जीतने नहीं देता।

श्री कृष्ण कहते हैं जिस व्यक्ति को आप की कद्र नहीं उसके साथ रहने से अच्छा है आप अकेले ही रहे।

हर कीमती चीज़ उठाने के लिए झुकना ही पड़ता है मां बाप का प्यार इनमें से एक है।

अगर व्यक्ति शिक्षा से पहले संस्कार, व्यापार से पहले व्यवहार और भगवान से पहले माता-पिता को पहचान ले तो जिंदगी में कभी कोई कठिनाई नहीं आएगी।

स्वार्थ से रिश्ते बनाने की कितनी भी कोशिश करो वो कभी नहीं बनते और प्रेम से रिश्तो को कितना भी तोड़ने की कोशिश करो वो कभी नहीं टूटते।

हर किसी के अंदर अपनी ताकत और कमजोरी होती है। मछली जंगल में नहीं दौड़ सकती और शेर पानी का राजा नहीं बन सकता इसलिए अहमियत सभी को देनी

चाहिए।

 कभी भी स्वयं पर घमंड मत करना क्योंकि पत्थर भी भारी होकर पानी में अपना वजूद खो देता है।

हद से ज्यादा सीधा होना ठीक नहीं क्योंकि जंगल में सबसे पहले सीधे पेड़ों को ही काटा जाता है।

अच्छी किस्मत के लोग थोड़ा भी बुरा होने पर भगवान को कोसते हैं और बुरी किस्मत के लोग थोड़ा भी अच्छा होने पर भगवान का धन्यवाद करते हैं।

श्री कृष्ण कहते हैं किसी को कुछ देकर अहंकार मत करना, क्या पता तू जो दे रहा है उससे अपने पिछले जन्म का कर्जा चुका रहा हो।

जिंदगी के इस रण में स्वयं ही कृष्ण और स्वयं ही अर्जुन बनना पड़ता है, रोज अपना ही सारथी बनकर जीवन की महाभारत को लड़ना पड़ता है।

सदा मौन रहना उचित नहीं है क्योंकि इतिहास साक्षी है संसार में अधिकतर विपदाएं इसलिए आई क्योंकि समय पर मनुष्य उनका विरोध नहीं कर पाया।

जब मनुष्य को अपने धर्म पर अहंकार हो जाता है तब उसके हाथों अधर्म होने लगता है।

इच्छाओं का त्याग करना ही खुशी का सबसे बड़ा कारण है।

श्री कृष्ण कहते हैं जब आप दूसरों के लिए अच्छा चाहते हो तो वही अच्छी चीजें आपके जीवन में वापस आती है यही प्रकृति का नियम है।

जिस प्रकार तेल समाप्त होने पर दीपक बुझ जाता है उसी प्रकार कर्म क्षीण होने पर भाग्य भी नष्ट हो जाता है।

कोई अपना साथ ना दे तो निराश मत होना क्योंकि प्रभु से बड़ा हमसफ़र कोई नहीं है।

जिसे तुम अपना समझ कर प्रसन्न हो रहे हो बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दुखो का कारण है।

क्रोध हो या आंधी जब दोनों शांत हो जाते हैं तभी पता चलता है कि कितना नुकसान हुआ है।

परोपकार सबसे बड़ा पुण्य है और दूसरों को कष्ट देना सबसे बड़ा पाप है।

मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है जैसा वो विश्वास करता है वैसा ही बन जाता है।

संदेह करने वाले लोगों को प्रसन्नता ना इस लोक में मिलती है और ना ही किसी अन्य लोक में।

परमात्मा कहते हैं भाग्य से जितनी ज्यादा उम्मीद करोगे वह उतना ही ज्यादा निराश करेगा और कर्म पर जितना जोर दोगे वह हमेशा उम्मीद से ज्यादा देगा।

मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया मन से मिटा दो फिर सब तुम्हारा है और तुम सबके हो।

इतिहास कहता है कि कल सुख था, विज्ञान कहता है कि कल सुख होगा लेकिन धर्म कहता है कि अगर मन सच्चा और दिल अच्छा है तो हर रोज सुख होगा।

जब तुम्हें विश्वास है कि तुम्हारा ईश्वर तुम्हारे साथ है तो क्या फर्क पड़ता है कि कौन तुम्हारे खिलाफ है।

जिंदगी को हमेशा मुस्कुराकर जियो क्योंकि आप नहीं जानते कि यह कितनी बाकी है।

मैं विधाता होकर विधि के विधान को नहीं डाल सका, मेरी चाह राधा थी और चाहती मुझको मीरा थी पर मैं रुकमणी का हो गया।

जो सत्य की राह पर चलते हैं उनकी जीत का शंखनाद स्वयं प्रभु करते हैं, उनकी तकलीफों का समाधान भी वही निकालते हैं।

जब समस्याओं पर ध्यान लगाओगे तो लक्ष्य दिखना बंद हो जाएगा और जब लक्ष्य पर ध्यान लगाओगे तो समस्याएं दिखने बंद हो जाएंगी।

आपके कर्म ही आपकी पहचान है वरना एक नाम के हजारों इंसान हैं।

प्रहलाद जैसा विश्वास हो, भीलनी जैसी आस हो, द्रोपदी जैसी पुकार हो और मीरा जैसा इंतजार हो तो श्रीकृष्ण को आना ही पड़ता है।

जब बुरे दिन आते हैं तो बुद्धि भी घास चरने चली जाती है, इंसान चाह कर भी सही निर्णय नहीं ले पाता इसलिए कहा जाता है कि इंसान बुरा नहीं होता उसका वक्त बुरा होता है।

श्री कृष्ण कहते हैं दुनिया के सारे खेल खेल लेना पर भूलकर किसी की भावनाओं के साथ मत खेलना क्योंकि ये वो गुनाह है जिन्हें मैं कभी माफ नहीं करूंगा।

घमंड बता देता है कि कितना पैसा है, संस्कार बता देते हैं कि परिवार कैसा है और बोली बता देती है इंसान कैसा है?

दो तरह के लोग आपको बताएंगे कि आप कोई परिवर्तन नहीं ला सकते, एक वो जो कोशिश करने से डरते हैं और दूसरे वो जो आपकी कामयाबी से डरते हैं।

ऊपर वाले की न्याय की चक्की धीमी जरूर चलती है लेकिन याद रखना यह पीसती बहुत अच्छे से है।

आत्मा पुराने शरीर को वैसे ही छोड़ देती है जैसे मनुष्य पुराने कपड़ों को उतारकर नए कपड़े धारण कर लेता है।

जीवन की सुंदरता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आप कितने खुश हैं परंतु इस बात पर निर्भर करती है कि आप के कारण दूसरे कितना खुश है।

श्री कृष्ण गीता में कहते हैं जब धरती पर पाप, अहंकार और अधर्म बढ़ेगा तो उसका विनाश करने, पुनः धर्म की स्थापना करने हेतु मैं अवश्य आऊंगा।

जब कोई आप से घृणा करने लग जाए तो समझ लेना वह आपका मुकाबला नहीं कर सकता।

कर्मफल व्यक्ति को उसी तरह ढूंढ लेता है जैसे एक बछड़ा सैकड़ों गायों के बीच अपनी मां को ढूंढ लेता है।

क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है और जब तर्क नष्ट हो जाता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।

दोस्तो मैं आशा करता हूं कि यह Post आपको पसंद आई होगी, धन्यवाद!

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