You are currently viewing कृष्ण वाणी भाग – 6,अमृत वचन,Krishna Vani,Success Mantra

कृष्ण वाणी भाग – 6,अमृत वचन,Krishna Vani,Success Mantra

श्री कृष्ण कहते हैं वह सब कुछ करो जो तुम्हें करना है लेकिन लालच से नहीं, अहंकार से नहीं, वासना से नहीं, ईर्ष्या से नहीं बल्कि प्रेम, करुणा, नम्रता और भक्ति भाव के साथ।

नर्क के तीन द्वार हैं काम, क्रोध, और लोभ। जो व्यक्ति कामी प्रवृत्ति का होता है जिसके मन में लोभ होता है और अत्यधिक क्रोधित स्वभाव का होता है उसके लिए नर्क के द्वार सदैव खुले रहते हैं अर्थात ऐसे व्यक्ति को सिर्फ नर्क में ही जगह मिलती है।

लोग अक्सर सच कहने से बचते हैं या डरते हैं लेकिन सत्य कभी छुप नहीं सकता और ना ही कभी मिट सकता है, कितना भी छुपा लो पर सच तो उजागर होकर ही रहता है।।

इस शरीर का मोह मत करो यह तो माटी है, माटी में मिल जाएगा अमर तो आत्मा है जो परमात्मा में मिल जाएगी।

मन चंचल है इसे संयमित करना कठिन है लेकिन यह अभ्यास से बस में हो जाता है।

जिस इंसान के चारों तरफ नकारात्मक लोग रहते हैं उस इंसान का मंजिल से भटक जाना तय है

ऐसा व्यक्ति जो अहंकार से मोहित हो जाता है वह सोचता है मैं ही कर्ता हूं।

श्री कृष्ण कहते हैं मैं किसी के भाग्य का निर्माता नहीं हूं। व्यक्ति स्वयं ही अपना भाग्य लिखता है, आप जैसा बीज बोएगे वैसी ही फसल काटेंगे, आप जैसा कर्म करेंगे वैसे ही परिणाम मिलेंगे। यदि विद्यार्थी मन लगाकर पढ़ाई करेंगे तो परीक्षा में सफल होंगे इसलिए हर व्यक्ति का भाग्य तभी बदलेगा जब वो अच्छे कर्म करेगा।

जो कुछ भी है यह वर्तमान है, जो बीत गया वह नहीं आएगा, जो आने वाला है उसकी चिंता नहीं बल्कि खुले हाथों से स्वागत करें।

भ्रम और संदेह से परे जब आप भगवान से प्रेम करते हैं तो आप प्रत्येक चीज से प्रेम करते हैं।

मन उन लोगों के लिए दुश्मन की तरह काम करता है जो इसे नियंत्रित नहीं करते और जिसने मन को जीत लिया है उसके लिए मन सबसे अच्छा मित्र है।

आप केवल कर्म के हकदार हैं उसके फल के कभी नहीं।

खुशी मन की एक अवस्था है जिसका बाहरी दुनिया से कोई संबंध नहीं है।

कोई भी व्यक्ति जो अच्छा काम करता है उसका अंत कभी भी बुरा नहीं होगा चाहे यहां या आने वाले संसार में।

जिनके मन और आत्मा में सामंजस्य है जो इच्छा और क्रोध से मुक्त है, जो अपनी आत्मा को जानते हैं उनके साथ ईश्वर की शांति है।

हम वही देखते हैं जो हम हैं और हम वही हैं जो हम देखते हैं।

श्री कृष्ण कहते हैं पूर्ण लगन के साथ अपना कार्य करो लेकिन उसके फल की इच्छा मत करो क्योंकि जब आप फल की इच्छा करते हैं तब कहीं ना कहीं आप अपने कार्य में पूर्ण रूप से समर्पित नहीं हो पाते।

हम जो कुछ भी हैं वह हमने जो सोचा है उसका परिणाम है, हम अपने विचारों से बने हैं और अपने विचारों में ढल जाते हैं।

 जिस प्रकार शरीर बचपन, युवा अवस्था, और वृद्धावस्था से गुजरता है उसी प्रकार मृत्यु के समय वह केवल दूसरे प्रकार के शरीर में प्रवेश करता है, बुद्धिमान इसके बहकावे में नहीं आते।

ना यह शरीर तुम्हारा है और ना तुम इस शरीर के हो। यह शरीर तो अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा परंतु आत्मा स्थिर है।

तुम अपने आपको मुझे अर्पित करो यही सबसे उत्तम सहारा है जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिंता और शोक से सदा के लिए मुक्त हो जाता है।

उम्मीद आपके रिश्तो को कमजोर बनाती है और उम्मीद का जन्म आपके मन में ही होता है।

शांति, नम्रता, मौन, संयम और पवित्रता ये सभी मन के अनुशासन है।

स्वार्थ की सभी इच्छाओं पर काबू पाना पर्याप्त नहीं है बल्कि स्वामित्व और अहंकार को भी बस में करना आवश्यक है।

भले ही दुर्बलता ईश्वर द्वारा दी जाती है लेकिन गरिमा मनुष्य के मन को स्वयं निर्मित करती है।

अंत में सभी आत्माओं को परमात्मा में ही मिल जाना है यही  आत्मा का अंतिम लक्ष्य है।

आज जो तुम्हारा है कल वो किसी और का होगा इसलिए व्यर्थ का पछतावा मत करो।

मन सफेद कपड़े के समान है इस पर जैसा रंग डालोगे वही रंग चढ़ जाएगा।

उठो श्री कृष्ण के चरणों का वंदन करो, लज्जा और अभिमान को छोड़ दो, मन को निर्विकल्प कर दो और वृत्तियों का समाधान करके हरि चरणों का वंदन करो।

जीवन में सुख ही सुख है यदि हम आशाओं का त्याग कर दें क्योंकि जीवन में आधे दुःखों का कारण आशाएं है।

क्रोध की अवस्था में भ्रम जन्म लेता है, भ्रम बुद्धि को नष्ट कर देता है और बुद्धि के नष्ट होते हैं व्यक्ति का पतन हो जाता है।।

श्री कृष्ण कहते हैं मैं सभी प्राणियों को समान रूप से देखता हूं मेरे लिए कोई छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब नहीं है और ना ही कोई मुझे कम प्रिय है ना अधिक, लेकिन जो मेरी प्रेम पूर्वक आराधना करते हैं मैं सदैव उनका हूं।

आप अकेले आए हैं और अकेले ही जाना है इसलिए स्वयं पर भरोसा करो।

हर किसी का जन्म किसी ना किसी कारण से होता है इसे पहचानो और केवल कर्म करते रहो।

कर्मवीर मनुष्य ही अपनी पहचान बनाते हैं, जो कर्म नहीं करते वो विलुप्त हो जाते है।

इंद्रियों से मिलने वाला सुख पहले तो अमृत जैसा लगता है लेकिन अंत में यह विष के समान कड़वा लगने लगता है।

आपके सिवाय इस दुनिया में कोई भी आपको परेशान नहीं कर सकता।

विश्वास का उत्तम उदाहरण है  अर्जुन ने नारायणी सेना का त्याग करके श्रीकृष्ण को चुना।

अपने विश्वस्त व्यक्ति से धोखा खाने के बाद लोग चाहकर भी किसी पर पूर्ण रूप से भरोसा नहीं कर पाते, यही सत्य है।

अहंकार तब उत्पन्न होता है जब हम भूल जाते हैं कि प्रशंसा हमारी नहीं, हमारे गुणों की हो रही है।

धर्म केवल रास्ता दिखाता है लेकिन मंजिल तक कर्म ही पहुंचाता है।

इंसान के परिचय की शुरुआत उसके चेहरे से होती है लेकिन संपूर्ण पहचान उसकी वाणी से होती है।

तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नहीं है और फिर ज्ञान की बातें करते हो, बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं।

प्रेम और आस्था दोनों पर किसी का जोर नहीं चलता, यह मन जहां लग जाए वही ईश्वर नजर आता है।

मुंह से माफ करने में किसी को वक्त नहीं लगता लेकिन दिल से माफ करने में सारी उम्र बीत जाती है।

राधा-कृष्ण का मिलना तो बस एक बहाना था, दुनिया को प्रेम का सही मतलब समझाना था।

कभी उसको नजरअंदाज ना करो जो तुम्हारी बहुत परवाह करता है वरना किसी दिन तुमको एहसास होगा कि पत्थर जमा करते हुए तुमने हीरा गंवा दिया।

संभव ना हो तो मना कर दे लेकिन किसी को अपने लिए इंतजार ना करवाएं।

दुनिया में कुछ ऐसे इंसान होते हैं जिन्हें तुम कितना भी प्रेम और सम्मान दो लेकिन वे आपको धोखा ही देते हैं क्योंकि ऐसे लोगों की फितरत कभी नहीं बदल सकती।

किसी का वर्तमान देखकर उसका मजाक नहीं उड़ाना चाहिए क्योंकि समय बदलता रहता है और समय के साथ कर्म भी बदलते रहते हैं तथा कर्मों से भाग्य बदलता है, समय में इतनी ताकत होती है कि वह किसी की किस्मत, कभी भी पलट सकता है।

मन में जो है उसे कह देना चाहिए क्योंकि सच बोलने की से फैसले होंगे और झूठ बोलने से फासले होंगे।

ईश्वर तब खुश होते हैं जब वह देखते हैं कि दुखों के बावजूद इंसान उस पर विश्वास कर रहा है और विश्वास रखिए आपके हर विश्वास की कीमत समय आने पर जरूर अदा करेगा।

आज के जमाने में किसी को ये महसूस मत होने देना कि आप अंदर से टूटे हुए हैं क्योंकि लोग टूटे हुए मकान की ईट तक उठाकर ले जाते हैं।

लोग उपवास केवल अन्न का रखते हैं जबकि दिल में जहर, लोभ, लालच, क्रोध और बुरे विचारों को पालते हैं।

इतने कड़वे मत बनो कि कोई चख ना सके और इतने मीठे भी मत बनो कि कोई निकल जाए।

तरक्की की राह पर उसी का जोर चलता है, बनाकर रास्ता जो भीड़ से अलग चलता है।

दोस्तों मैं उम्मीद करता हूं यह Post आपको पसंद आई होगी धन्यवाद!!

PDF

Leave a Reply