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गीता सार

दोस्तों, भगवतगीता और भगवतगीता के ज्ञान पर असंख्य लोगों ने काम किया है। क्या विशेष है इस गीता में अगर कुछ विशेष है तो वो है श्रीकृष्ण, बाकी हम सब निमित्त हैं, साधन है लेकिन ये मेरा प्रयास है कि हमारे आज के युग में यह ग्रंथ हमें रास्ता दिखाए आसानी से गीता को हम समझ पाए और अपने रोजमर्रा के जीवन में इसका उपयोग कर पाए। गीता का ज्ञान परमात्मा ने सबसे बड़े धर्म युद्ध महाभारत की रणभूमि कुरुक्षेत्र में कुछ 5000 साल पहले दिया। ये वो वक्त था जब धर्म का बार-बार उल्लंघन हुआ, परमात्मा का डर मनुष्य से निकल गया, लालच के कारण भाई ने भाई को मारने की कोशिश की और यही नहीं एक पतिव्रता स्त्री को भरी सभा में अपमानित किया गया। परमात्मा ने भगवत गीता का ज्ञान युद्ध से कुछ क्षण पहले संपूर्ण मनुष्य जाति को दिया।

परमात्मा भगवत गीता में कहते हैं कि मैं सबकी शुरुआत हूं, मैं शुरू से भी पहले था और सब खत्म होने के बाद भी रहूंगा। सब मुझ में है और मैं सब में हूं। जो भी तुम छू सकते हो, देख सकते हो, चख सकते हो या सुन सकते हो वह सब मैं हूं। ये नदियां, पहाड़, सूरज, ग्रहण, चांद-सितारे सब मैंने बनाए हैं, मैंने ही भगवान, शैतान, राक्षस और इंसान बनाए हैं। मैं सर्वव्यापी हूं, सब में रहता हूं। मैं ही ब्रह्मा बनकर सब बनाता हूं और रुद्र बनकर सब नष्ट कर देता हूं। मैं यह सृष्टि यूं ही बनाता तोड़ता रहूंगा ताकि जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने और हमेशा परमात्मा के साथ रहने के लिए आत्माओं को मौके मिल सके। भगवत गीता कहती है कि सबसे बड़ी परीक्षा के लिए परमात्मा ने प्रकृति का निर्माण पांच तत्वो हवा,‌‌ पानी, अग्नि, पृथ्वी और आकाश से किया है, जिन्हें हम छूकर, चखकर, देखकर समझ सकते हैं लेकिन स्वयं परमात्मा हमारी इंद्रियों की समझ से बाहर है। परमात्मा को आत्मा इंद्रियों से नहीं जान सकती, आत्मा पांच इंद्रियों के साथ वैसे ही है जैसे एक लोहे का रोबोट जिसे बनाने वाले का कोई पता नहीं। अर्जुन को भी परमात्मा का विराट रूप देखने के लिए भगवान कृष्ण ने दिव्य नेत्र दिए। भगवत गीता समझाती है कि आत्मा अजन्मी है उसे कोई मार नहीं सकता, कोई जला नहीं सकता कोई डुबा नही सकता, कोई काट नहीं सकता लेकिन आत्मा को परमात्मा के साथ हमेशा रहने के लिए परीक्षा रूपी जीवन में बैठना ही पड़ेगा। इस परीक्षा के लिए परमात्मा से बिछुड़कर आत्मा को पृथ्वी पर किसी ना किसी रूप में जन्म लेना पड़ता है और 84 करोड़ योनियों को जीने और मरने के बाद एक आत्मा को मनुष्य का शरीर और दिमाग मिलता है। सबसे बड़ी मर्यादाओं की परीक्षा में बैठने के लिए हर मनुष्य को पूरी परीक्षा के दौरान तरह-तरह की अच्छी और बुरी भावनाओं के चक्रव्यूह में अपने ही भाई-बहन या मित्रों के साथ डाला जाता है जिसमें हर आत्मा को अपने अंदर के तामसिक और राजसिक जीवन से निकलकर सात्विक जीवन में प्रवेश करने के मौके मिलते हैं। हमारे तामसिक गुण वे है जो हमारे अंदर हीन भावना पैदा करके हमें स्वयं को उदास और नुकसान पहुंचाते हैं और राजसिक गुण वे हैं जो हमें ईर्ष्यालु और लोभी बनाकर दूसरों के प्रति नुकसान पहुंचाने के लिए प्रेरित करते हैं। इस परीक्षा के दौरान हर आत्मा को तामसिक और राजसिक गुणों को समाप्त करके अपने सात्विक गुणों से परिचित होना पड़ेगा। सात्विक गुण वे हैं जो आत्मा को अपने आसपास की हर चीज से जोड़ते हैं और हमें प्यार करना सिखाते हैं।

परीक्षा के दौरान हर आत्मा को जीवन के चारों स्तंभों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान पाकर ही मुक्ति मिलती है। यही वो द्वार है जिसे समझ कर ही आत्मा परमात्मा को समझ सकती है। पहला द्वार धर्म का है और शेर इसका प्रतीक है। धर्म वही है जो गीता, वेदो, गुरु ग्रंथ साहिब, बाइबिल तथा कुरान में लिखा हुआ है। धर्म वही है जिसे धारण किया जाता है, जिसे आपका दिल मानता है जैसे झूठ नहीं बोलना, चोरी नहीं करना भगवान का निरादर नहीं करना, दूसरों को नुकसान नहीं देना, यही सब धर्म है और हर आत्मा को अपने जीवन काल में, हर समय धर्म का पालन करना पड़ेगा और उसकी रक्षा करनी होगी।

दूसरा द्वार अर्थ का है जिसका प्रतीक घोड़ा है। हर आत्मा अपने जीवन काल में स्वयं को पृथ्वी पर होने का अर्थ या मूल कारण समझेगी और इस जिंदगी में भोगने वाली चीजों और रिश्तो का आनंद लेगी; अच्छा बेटा या अच्छी बेटी, अच्छा भाई या अच्छी बहन, अच्छा पति या अच्छी पत्नी बनकर हर बुनियादी रिश्तो पर खरी उतरेगी।

तीसरा द्वार काम का है, भगवत गीता समझाती है कि हर मनुष्य के अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और ईर्ष्या जैसी 6 भावनाएं, अपने और दूसरों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इन भावनाओं को हर मनुष्य द्वारा नियंत्रण किया जाना आवश्यक है क्योंकि इनके प्रभाव में किया हुआ कोई भी काम हमारे जीवन भर की परेशानी का कारण बन सकता है लेकिन एक आत्मा संतोष और सादगी से इन भावनाओं पर हमेशा के लिए विजय पा सकती है।

चौथा द्वार मोक्ष का है जिसका प्रतीक हाथी है। इस परीक्षा रूपी जीवन में हर मनुष्य हर समय कुछ इच्छाएं रखता है, कुछ इच्छाएं एक ही जन्मकाल में पूर्ण हो जाती हैं लेकिन कुछ अधूरी रह जाती हैं और इनको पूरा करने के लिए आत्मा को वापस पृथ्वी पर आना पड़ता है।

भगवत गीता समझाती है कि हमारी इच्छाएं ही पृथ्वी पर वापस आने का मूल कारण है और यदि हम कोई इच्छा ना रखें तो हम जन्म और मरण के चक्र से मुक्त हो सकते हैं। यह द्वार माफी का भी है जिन्होंने आपके साथ बुरा किया है उनको माफ करके और जिनके साथ आपने बुरा किया उनसे माफी मांगकर मुक्ति पाई जा सकती है। जब तक आत्माएं इन चारों दरवाजों को समझ नहीं लेती तब तक आत्मा को बार-बार मनुष्य रूप में आना ही पड़ेगा। जब परीक्षा का समय समाप्त होता है तब आत्मा शरीर और अन्य सब वस्तुओं का त्याग कर देती है, जो भी संसार में रहकर बनाया वह अब किसी और का होगा और आत्मा अपने कर्मों के फैसले के लिए चली जाती है। आत्मा के अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब होता है, अच्छे कर्मों के लिए आत्मा कुछ वक्त स्वर्ग और दुष्कर्मो के लिए नर्क में चली जाती है। नर्क में आत्मा को अपने पापों की अनुकूल सजाएं मिलती हैं और सजा खत्म होने के बाद आत्मा को फिर एक नया शरीर और दिमाग मिलता है। परीक्षा में फिर से बैठने के लिए और हर परीक्षा में वही सब फिर से दोहराया जाता है। जिंदगी के चार स्तंभों धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को समझने के लिए हर आत्मा को हर जन्म में कई जन्मों के कर्मों के हिसाब से कभी अच्छे और कभी बुरे हालातों से गुजरना पड़ता है लेकिन जब तक आत्मा परमात्मा के साथ योग को नहीं समझ लेती वह मुक्ति नहीं पा सकती।

भगवत गीता समझाती है कि मनुष्य अपने शरीर, दिमाग या दिल से भगवान को पा सकता है। शरीर द्वारा किए गए कर्मों के माध्यम से परमात्मा को जानना कर्म योग कहलाता है। ऐसे कर्म जो परमात्मा की इच्छा से हो और दूसरों के कल्याण के लिए किए गए हो कर्मयोग की श्रेणी में आते हैं, बाल्मीकि जी ने रामायण लिख कर और श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को चार धाम की यात्रा करवाकर अपने कर्मों द्वारा परमात्मा को पाया। भगवत गीता समझाती है कि दिमाग द्वारा भी आत्मा का योग परमात्मा से कराया जा सकता है इसे राजयोग कहते हैं, क्योंकि हमारा दिमाग इंद्रियों का राजा है। एक मनुष्य अपनी आस्था, श्वास प्रणाली, आसन, अभ्यास, साधना और तपस्या से भी परमात्मा को इस योग के रास्ते पा लेता है। इस संयोग को समझने के लिए हमें अपने अंदर की एनर्जी यानी चक्र और कुंडलिनी शक्ति को समझना पड़ेगा। आत्मा मस्तिष्क द्वारा ध्यान लगाकर परमात्मा के साथ योग कर सकती है। शंकराचार्य, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और उनके जैसी कई योगी इस योग के रास्ते परमात्मा के साथ संधि कर पाए। परमात्मा भगवत गीता में कहते हैं कि अगर किसी आत्मा को धर्म और योग ना भी समझ में आए लेकिन अगर वह मेरी शरण में आ जाए तो मैं उसके सारे पाप माफ कर देता हूं। परमात्मा को दिल की गहराइयों से पुकारना भक्ति योग कहलाता है, चैतन्य महाप्रभु मीराबाई और वीर हनुमान इस योग के सबसे बड़े उदाहरण है लेकिन कभी आत्मा अपने होने का मूल कारण भूलकर धर्म का उल्लंघन करें या पाप के रास्ते पर निकल जाए तो उसे ठीक करने के लिए परआत्मा स्वयं किसी रूप में पृथ्वी पर जन्म लेते है

दोस्तों अगर आप इस भगवत गीता सार का video देखना चाहते है तो इस video को देखे ।

मित्रों आपने यह भगवतगीता सार अच्छे से समझा हो तो इसे औरों के साथ भी बांटे। मित्रों मैं उम्मीद करता हूं यह भगवतगीता सार आपको पसंद आया होगा धन्यवाद!

This Post Has One Comment

  1. amresh

    well done dear

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