दो प्रेरणादायक कहानियां

एक राजा और साधु की कहानी

पुराने समय की बात है एक राजा बहुत ताकतवर था। उसने सभी राजाओं को हराकर अपने राज्य के अधीन कर लिया। एक दिन उसके महल में एक साधु आया और बोला राजन आप भले ही दुनिया जीत चुके हैं लेकिन अभी आपके पास एक चीज की कमी है। राजा ने कहा किस चीज की कमी है महाराज। साधु ने कहा जाने दो आप उसे हासिल नहीं कर सकते। राजा ने कहा तुम बताओ तो सही। साधु बोला आपके पास देवताओं की कीमती वस्त्र नहीं है। राजा ने कहा उन्हें हासिल करने के लिए मुझे क्या करना होगा। साधु ने कहा यदि आप मुझे अनुमति दें, मुझे 6 महीने का समय लगेगा। मैं आपके महल में तपस्या करके उन वस्तुओं को ले आऊंगा। लेकिन एक शर्त है, मैं आपसे जरूरत की जो भी चीज मांगू आपको मुझे देनी होगी। राजा ने कहा ठीक है लेकिन आप मुझे धोखा देकर भाग गए तो। साधु बोला इतने बड़े राजा को भले मैं कैसे धोखा दे सकता हूं? राजा मान गया और उस शादी को अपने महल में एक कमरा दे दिया। हर रोज वसादु राजा से धन, आभूषण मांगता और देखते-देखते 6 महीने बीत गए।

राजा ने अपने सिपाहियों से कहा लगता है यह साधु हमें मूर्ख बना रहा है। राजा ने कहा अंदर जाकर देखो क्या कर रहा है? साधु ने बाहर आकर कहा बस 2 दिन में मेरी तपस्या पूर्ण हो रही है आप महल में जश्न का इंतजाम कीजिए। यह सुनकर राजा बहुत खुश हुआ और उसने पूरे महल को सजवा दिया। राजा ने दूसरे राज्यों के राजाओं को भी निमंत्रण दिया। राजा बहुत कुछ था क्योंकि वह सोच रहा था कि देवताओं के कपड़े पहनने को मिलेंगे और इससे मेरी मान प्रतिष्ठा और बढ़ेगी। दो दिन बाद वह साधु हाथ में बड़ा बक्सा लेकर आया, महल में हजारों लोग उन कपड़ों को देखने के लिए इकट्ठे हुए।

साधु ने कहा यह कपड़े हर किसी को दिखाई नहीं देंगे यह उन्हें ही दिखाई देंगे, जो अपने पिता की सच्ची औलाद होंगे। साधु की बात सुनकर सभी मौन हो गए। साधु बोला राजन मैं आपको कपड़े देता जाऊंगा और आप पुराने कपड़े साथ ही उतार कर उन्हें पहनते जाएंगे। साधु ने बक्से में हाथ डाला और कहा यह लो राजन् पगड़ी। वहां पर बैठे सभी लोगों और राजा ने देखा कि साधु के हाथ में कुछ नहीं है लेकिन सबको साधु की बात याद आ गई कि जो अपने बाप का असली बेटा हुआ उसे ही यह कपड़े दिखाई देंगे। यह देखकर सबने झूठ मे कहा वाह वाह क्या शानदार पगड़ी है।

राजा ने अदृश्य पगड़ी को उठाया और पहन लिया। इसके बाद साधु ने कोट निकालकर राजा को दिया, सब ने कहा वाह वाह क्या कोट है? सभी को डर था कि पता नहीं हम असली बाप की औलाद है कि नहीं और राजा ने वह अदृश्य कोट पहन लिया। उसके बाद शादी में बक्से में हाथ डालकर लंगोट निकाली और राजा से कहा कि अपनी लंगोट उतारो और यह कीमत लंगोट पहन लो। ऐसा करते ही इतना बड़ा राजा बिना कपड़ों की नंगा खड़ा हो गया और चारों और तालियां बजने लगी वाह वाह क्या सुंदर कपड़े हैं! सभी को पता था लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई कुछ कहने की।

साधु आगे बोला कि देवताओं की आज्ञा है इन कपड़ों को पहन कर एक बार राज्य में घुमाया जाए। राजा बड़ी चिंता में पड़ गया कि महल तक तो ठीक था लेकिन अब बिना कपड़ों के पूरा राज्य मुझे देखेगा तो मेरी क्या इज्जत रह जाएगी। साधु बोला राजा मैं समझता हूं कि आपकी क्या चिंता है लेकिन आप चिंता ना करें जो संदेश महल में दिया गया है वहीं राज्य में भी भेज दिया है कि वस्त्र उन्हें ही दिखाई देंगे जो अपने बाप की सच्ची औलाद होंगे।

राजा को सारे राज्य में घुमाया गया और सभी ने ताली बजाकर उसका स्वागत किया और कहा वाह-वाह क्या अद्भुत कपड़े हैं! कुछ छोटे-छोटे बच्चे हंसने लगे कि राजा नंगा है, राजा नंगा है बच्चे के पिता ने उन्हें डांटा कि मैं ही तेरा असली पिता हूं और कपड़े मुझे दिखाई दे रहे हैं तेरे पास देखने की क्षमता नहीं है तू बड़ा हो जाएगा तब तुझे देखने का अभ्यास हो जाएगा तब तुझे भी कपड़े दिखाई देंगे।

दोस्तों राजा की तरह हम सभी भी झूठे विश्वास, कसमो और जबरदस्ती थोपे हुए नियमों से जीते, इन नियमों का कोई मोल नहीं है। हम राजा की तरह सुनी सुनाई झूठ को सच मान बैठते हैं और अपना जीवन जी रहे हैं। यह हर इंसान को बर्बाद करने की सबसे बड़ी वजह है।

दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं जो आप नहीं कर सकते लेकिन आपको अपने झूठे विश्वासों को तोड़ना होगा जो आपके अंदर दूसरों से आया है। आप सैम पर विश्वास नहीं करोगे और झूठ को जबरदस्ती अपने ऊपर ओढ़ लोगे तो राजा की तरह जिंदगी भर कोई भी अपनी बात मनवाता रहेगा।

दोस्तों इस कहानी से सीखने को मिलता है कि हमेशा अपने आप पर विश्वास करना चाहिए तथा किसी भी बात को तर्क के तुला में तोल कर अपने ऊपर लागू करना चाहिए।

राजा और तोता की कहानी

पुराने समय की बात है एक राजा शिकार खेलने के लिए जंगल में गया। जंगल बहुत घना था, राजा रास्ता भटक गया था। कई घंटे गुजर गए अब राजा को प्यास लगने लगी, तभी उसकी नजर एक वृक्ष पर पड़ी जहां एक डाली पर टप टप करती पानी की छोटी छोटी बूंदे गिर रही थी। राजा ने पत्तों का दोना बनाकर पानी को इकट्ठा किया। राजा जैसे ही पानी पीने लगा तो एक तोता आया और झपट्टा मारकर उस पानी के दोने को गिरा दिया। राजा ने सोचा पक्षी को प्यास लगी होगी, वह पानी पीना चाहता है इसलिए उसने झपट्टा मारकर पानी को गिरा दिया। यह सोचकर राजा फिर से उस खाली दोने को भरने लगा, थोड़ी देर के बाद वह दोना फिर से भर गया, राजा ने खुश होकर जैसे ही उस दोने को उठाया तो तोते ने उसे वापस गिरा दिया। राजा को बहुत गुस्सा आया और उसने चाबुक को उठाकर तोते पर वार किया, इसके साथ ही तोते के प्राण निकल गए‌।

राजा ने सोचा अब शांति से पानी इकट्ठा कर अपनी प्यास बुझा पाऊंगा। यह सोचकर राजा वापस पानी इकट्ठा करने जाता है, तभी उसने वहां एक नजारा देखा तो उसके पांव के नीचे की जमीन खिसक गई। उस पेड़ की डाली पर एक जहरीला सर्प सोया हुआ था और उस सांप के मुंह से लार टपक रही थी। राजा जिसको पानी समझ रहा था वह सांप की जहरीली लार थी। राजा मन ही मन बहुत दुखी हुआ और सोचने लगा कि आज मैं संतो के बताए मार्ग पर चलता, क्षमा के उत्तम मार्ग को अपनाता और अपने क्रोध पर नियंत्रण रख कर पाता तो मेरे हितैषी निर्दोष बच्ची की जान ना जाती।

दोस्तों इस कहानी से सीख मिलती है कि जल्दी बाजी और बिना सोचे विचारे किया गया काम हमेशा परेशानी और पश्चाताप का कारण बनता है‌। हमें छोटी-छोटी बातों पर क्रोध नहीं करना चाहिए क्योंकि क्रोध करने से हमारा ही नुकसान होता है। कबीरदास जी कहते हैं कि जहां दया तहां धर्म है, जहां लोभ वहां पाप, जहां क्रोध तहां काल है, जहां क्षमा वहां आप

अर्थात जहां दया होती है वही धर्म होता है जहां लालच होता है वहां पाप होता है जहां क्रोध होता है वहां सर्वनाश होता है जिन लोगों के मन में क्षमा है वह ईश्वर का वास होता है।

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