महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। इस युद्ध में बड़े बड़े योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए। कौरवों का विनाश तो हुआ ही साथ ही पांडवों का भी सब कुछ तबाह हो गया पांडवों की सभी पुत्र इस युद्ध में मारे गई। महारानी द्रौपदी का जीवन शून्य हो चूका था मानो खुशी उनसे बहुत दूर चली गई है। उनके मन को विचारों ने घेरा हुआ था। द्रौपदी भगवान कृष्ण से कहती है आपने कहा था गोविंद ये युद्ध अनेक बलिदान लेगा। मेरे सारे पुत्रों का बलिदान देना होगा। ऐसा तो मैंने नहीं सोचा। भगवान कृष्ण बोले हमें दुख है सखी तुमने यह युद्ध किया द्रोपदी बोली क्या उत्तर दूं गोविंद देह की पीड़ा कल्पना में अधिक भोगने में कम किंतु हृदय की पीड़ा कल्पना में कम प्रतीत होती है।किंतु जब वास्तव में सामने आती है तो सहन करने की सीमा से बाहर चली जाती है। संसार में कोई सुख दिखाई नहीं देता। जीवन ही जैसे साथ छोड़ देता है कि मेरी संतान की मृत्यु के बाद मेरा एक एक अंग कट जाएगा। हे गोविंद! क्यों किया हमने यह युद्ध क्या लाभ प्राप्त हुआ। आपने अपने चमत्कार से मनुष्य के व्यवहार में परिवर्तन क्यों नहीं किया? सबको धर्म का मार्ग दिखाया होता। भगवान कृष्ण बोले, चमत्कार से मनुष्य की आत्मा में परिवर्तन नहीं होता सखी आत्मा परमात्मा का अंश है और उसकी स्वतंत्रता की कोई मर्यादा नहीं है। धर्म के मार्ग पर चलना है या अधर्म के मार्ग पर चलना है, ये आत्मा निश्चित करती है और उसके निश्चय को कोई चमत्कार बदल नहीं सकता। विचित्रता यही है सखी मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है परंतु बुद्धि पूर्वक विचार नहीं करता। ना धर्म का विचार करता है ना ही अधर्म का विचार करता है। वास्तव में वह केवल अपने से अधिक शक्तिमान का सत्ता स्थान पर बैठे व्यक्ति का अनुकरण करता है। पिता का अनुकरण पुत्र करता है, गुरु का अनुकरण शिष्य करता है, राजा का अनुकरण उसकी प्रजा करती है। यही कारण है जब राजाओं में अधर्म बढ़ता है तो उनकी प्रजा में भी अधर्म तीव्र गति से बढता है ये ऐसा ही समय था सखी जब सुख संपत्ति सीमाओं की भयानक लालसाएं राजाओं के मन में समस्या और् त्याग के स्थान पर भोग और वासनाओं का महत्व अधिक था और जब प्रजा अपने ही राजा को अधर्म करता हुआ देखती तो स्वयं ही अधर्म के मार्ग पर निकल पड़ती। विचार करो सखी मगध, तिर्गर्थ, कुरु, गांधार, पांचाल, चेदि, शिवि, विदर्भ जैसे बड़े-बड़े राज्यों में कौन सा राजा था जो धर्म का अनुकरण कर रहा था जो अपनी प्रजा के लिए धर्म का प्रमाण बन सकता था एक भी नहीं।
द्रौपदी बोली, किंतु इतना विध्वंस क्यों? गोविंद कोई अन्य मार्ग नहीं था भगवान कृष्ण बोले नहीं सखी इसी बात का तो दुख है। जिस वृक्ष पर कड़वे फल लगते हों, उसे उखाड़कर मधुर फल वाला वृक्ष लगाना पड़ता है उसी वृक्ष को खाद पानी देने से या उसकी टहनियों को काट छांट करने से फल मधुर नहीं हो जाते। आर्यावर्त का जो संबंध भूतकाल से था, उसे पूर्ण से काटकर नये भविष्य का निर्माण करना आवश्यक था। भविष्य को शुद्ध करने हेतु इस अशुद्ध वर्तमान को तोडना अनिवार्य था। आज रक्त से नहाकर यह संसार शुद्ध हो चुका है। आर्यावर्त की प्रजा जिन अधर्मी राजाओं का अनुकरण करती थी उन सभी राजाओं का नाश हो गया। द्रौपदी बोली किंतु हमारा विध्वंस क्यों नहीं हुआ गोविंद! हम भी तो भूतकाल की धरोहर लेकर जी रहे हैं। भगवान कृष्ण बोले तुम अग्नि से उत्पन्न हुई हो द्रोपदी तेरे पांच पति मंत्र प्रसाद है। तुम में से कोई भी पुरातन रक्त की धरोहर लेकर नहीं जन्मा ईश्वर ने तुम्हें दिव्य जन्म इसी कारण से दिया था कि तुम संसार की नई व्यवस्था निर्मित कर सको। भ्राता युधिष्ठिर संसार को न्याय और धर्म का लाभ अवश्य देंगे और जिनका उत्तराधिकारी जो उत्तरा के गर्भ में पल रहा है समय ने उसे गर्भ में ही मारकर पुनः जीवनदान दे दिया अर्थात् उस का शुद्धिकरण भी हो गया। भगवान आगे कहती हैं सखी यह बलिदान तुम्हारा या तुम्हारे परिवार का नहीं था यह बलिदान तो समग्र आर्यावर्तका था इसलिए अपने दुखों को छोड़ो और समग्र प्रजा के कल्याण का विचार करो और नई शुरुआत करो। भविष्य के सूर्य की पहली किरण को उगते हुए देखो।
दोस्तों यह छोटा सा प्रसंग हमें सिखाता है कि इंसान जो पाप करता है, अधर्म करता है। उसके कर्मों के परिणाम को तो ईश्वर भी नहीं बदल सकता। वो तो उसे मिलकर ही रहेगा और जो ईश्वर के बनाए मार्ग पर चलता है तो उसे ईश्वर कैसी भी परिस्थिति से निकाल लेता है, उसे वार लेता है।
दोस्तो आशा करता हूं कि आप भी ईश्वर के बनाए हुए मार्ग पर चलोगे तो बहुत आगे तक सफर करोगे।
धन्यवाद