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भगवान ने बताया अपने जीवन का संघर्ष

जय श्री कृष्णा दोस्तों, महाभारत युद्ध के 17-वे दिन का सूर्यास्त होने ही वाला था। अर्जुन के हाथों बाण लगने से जब कर्ण मौत के निकट था तब वह बेहद पीड़ा से गुजर रहा था। कर्ण के मन में ढेरों सवाल थे जिनका वह जवाब चाहता था। अपने प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए कर्ण ने भगवान श्री कृष्ण को याद किया। कर्ण के निवेदन पर भगवान श्री कृष्ण कर्ण के पास आए। कृष्ण के समीप आते ही कर्ण कहा “प्रणाम वासुदेव” अच्छा किया आप आ गए। मेरे मन में कुछ प्रश्न हैं जिनका उत्तर आपसे मैं चाहता हूं। भगवान श्री कृष्ण करुणा भरे स्वर में बोले, हे! मेरे प्रिय भ्राता कर्ण, आपको इस हालत में देखकर मेरा मन विचलित हो रहा है, बहुत पीड़ा हो रही होगी न मित्र। भगवान कृष्ण की बातें सुनकर करण मुस्कुरा दिए। भगवान कृष्ण ने कहा पूछो राधे क्या पूछना चाहते हो। कर्ण ने भगवान से कहा,‌ मेरे दुर्भाग्य की सीमाओं को क्या माप सकते हैं वासुदेव? मैं सूर्यपुत्र राधे कर्ण के नाम से जाना जाता हूं, मैं कुंती पुत्र कर्ण राधेय के नाम से जाना जाता हूं। मैं कुलीन युधिष्ठिर, शक्तिशाली भीम, शूरवीर अर्जुन, सुंदर नकुल और बुद्धिमान सहदेव का जेष्ठ भ्राता कर्ण राधेय के नाम से जाना जाता हूं। सारा संसार मुझे सूत पुत्र कहता रहा और मैं सुनता रहा, तनिक सोचिए वासुदेव तनिक सोचिए तनिक मेरी पीड़ा को समझने का प्रयत्न कीजिए।

भगवान कृष्ण करण के और पास आए और बोले हे! राधेय आज जो भी बोलना है जी भर कर बोलिए फिर मैं भी आपको इस मुस्कुराते चेहरे के बारे में कुछ बताऊंगा। कर्ण बोला हे! माधव जन्म देते ही मुझे मेरी मां ने त्याग दिया क्योंकि मैं माता के विवाह से पूर्व जन्मा था, परंतु एक अवैध पुत्र के रूप में जन्म लेने में मेरा क्या अपराध था? गुरु द्रोणाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना कर दिया क्योंकि मैं एक सूत पुत्र था। क्षत्रिय होते हुए भी मैं छत्रिय नहीं था। जीवन भर मैं इस बोझ को ढोता रहा परंतु इसमें मेरा क्या अपराध था? भगवान परशुराम ने मुझे उपहार स्वरूप शिक्षा तो दी परंतु अभिशाप स्वरूप शाप भी दिया कि जिस वक्त इस विद्या कि मुझे सबसे अधिक आवश्यकता होगी उस वक्त मैं उस विद्या को भूल जाऊंगा। अब बोलो केशव इसमें मेरा क्या दोष था? एक बार जब मैं अपनी शब्दभेदी बाण की विद्या का अभ्यास कर रहा था तब मेरा तीर गलती से एक बड़े बछड़े को लग गया और बछड़े की मृत्यु हो गई। जो बस एक दुर्घटना मात्र थी, मेरे बार-बार माफी मांगने पर भी बछड़े के स्वामी ने मुझे शाप दिया कि असहाय अवस्था में मेरी भी मृत्यु होगी जबकि उस दुर्घटना में भी मेरा कोई दोष नहीं था परंतु फिर भी मुझे उस शाप का कष्ट भोगना पड़ा। हे! माधव दुर्घटना किसी से भी हो सकती है इसमें मेरा क्या अपराध था? इतना ही नहीं द्रौपदी के स्वयंवर में भी मेरा अपमान हुआ क्योंकि मैं एक सूत पुत्र था। क्या सूत पुत्र होना मेरा स्वयं का चुनाव था, परिस्थितियों ने मुझे सूत पुत्र बना दिया इसमें मेरा क्या अपराध था? कर्ण आगे कहता है हे! केशव आज जो कुछ भी मुझे प्राप्त हुआ है वह दुर्योधन से ही प्राप्त हुआ है यदि मैं उसकी तरफ से लड़ा तो मैं गलत कैसे हुआ?

कर्ण के इन प्रश्नों को सुनने के बाद भगवान श्रीकृष्ण बोले हे! मेरे प्रिय भ्राता कुंती पुत्र कर्ण इतना भी दुखी मत हो, अब मेरी भी कहानी सुन लो। मेरा भी जन्म कारागार में हुआ, जन्म से पूर्व मामा कंस के रूप में मृत्यु मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। जिस रात मेरा जन्म हुआ उसी रात मुझे मेरे माता-पिता से अलग कर दिया गया। हे! कर्ण तुम्हारा बचपन खड़ग, रथ, घोड़े, धनुष और बाणो के बीच उनकी ध्वनि सुनते हुए बीता परंतु मुझे ग्वाले की गौशाला मिली, गोवर मिला और खड़ा होकर चल भी नहीं पाया कि उसके पहले प्राणघातक हमले झेलने पड़े। कोई सेना नहीं, कोई शिक्षा नहीं, कोई गुरु नहीं लोगों से सिर्फ ताने ही मिले कि गोकुल में इन प्राणघातक हमलों का मूल कारण मैं हूं। तुम्हारे गुरु परसुराम तुम्हारे शौर्य की तारीफ करते हुई कह रहे थे कि भगवान शिव को छोड़कर तुम्हें कोई परास्त नहीं कर सकता, मुझे उस उम्र तक कोई शिक्षा भी नहीं मिली। तुमने अपनी पसंद की कन्या से विवाह किया परंतु मैंने जिस कन्या से प्रेम किया वह मुझे नहीं मिली बल्कि मुझे उस कन्या से विवाह करना पड़ा जो मुझसे प्रेम करती थी, जो मुझे चाहती थी। जरासंध से बचने के लिए मुझे मेरे पूरे समाज को यमुना के किनारे से हटाकर एक दूर समुद्र के किनारे बसाना पड़ा। इसके लिए मुझे रणभूमि छोड़कर भागना पड़ा, रणभूमि से पलायन करने के कारण मुझे कायर और रणछोड़ कहा गया। जरा विचार करो राधेय अगर दुर्योधन जीतता हैं तो तुम्हें बड़ा श्रेय मिलेगा, धर्मराज युधिष्ठिर जीतता हैं तो मुझे क्या मिलेगा? मुझे केवल युद्ध और युद्ध से निर्मित समस्याओं के लिए दोष दिया जाएगा। सब यही कहेंगे कि इस देवकी पुत्र ने महाभारत करवाया।

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हे! राधेय जीवन हर किसी को चुनौतियां देता है, जिंदगी किसी के साथ न्याय नहीं करती। अगर दुर्योधन ने अन्याय का सामना किया तो युधिष्ठिर ने भी अन्याय को भुगता है।भगवान श्री कृष्ण आगे कहते हैं हे! राधेय इस पूरी पृथ्वी पर कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे ऐसा ना लगा हो कि उसकी समस्या सामने वालों की समस्या से बड़ी नहीं है। हर किसी को ऐसा ही लगता है कि उसकी समस्या की पोटली सामने वालों की पोटली से बड़ी है परंतु यह सत्य नहीं होता। हर किसी की समस्या अपने अपने स्थान पर बड़ी ही होती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम गलत मार्ग पर चलकर अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढने लगो क्योंकि हमारी प्रकृति किसी को भी अधर्म के मार्ग पर चलने की अनुमति नहीं देती और अगर कोई अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए अधर्म के मार्ग पर चलेगा तो उसका हस्र तुम्हारे जैसा ही होगा। करण अपने जीवन से बहुत दुखी था। उसे लगता था कि उसका जीवन बेहद ही अधिक कष्टों से बीता है परंतु जब भगवान श्री कृष्ण ने अपने जीवन की तुलना कर्ण के जीवन से की तब कर्ण को समझ आया कि कृष्ण की समस्याओं के सामने मेरी समस्या कुछ भी नहीं है। अंत समय में कर्ण भगवान श्री कृष्ण का ज्ञान सुनकर बेहद तृप्त महसूस कर रहा था और शांत मन से कर्ण ने अपने प्राणों का त्याग किया। इस कहानी से यही सीख मिलती है कि हर इंसान यही सोचता है कि उसकी समस्या सबसे बड़ी है वह बहुत सी समस्याओं से घिरा हुआ है, उसकी किस्मत खराब है लेकिन हम दूसरों की समस्याओं को देखें, उन्हें ध्यान से सुने तो हमे हमारी समस्या बहुत छोटी लगने लगेंगी। अक्सर हम छोटी-छोटी समस्याओं को लेकर अपने जीवन और अपनी किस्मत को कोसते रहते हैं जिसमें ज्यादातर समस्या ऐसी होती हैं जिन्हें हम थोड़ी सी मेहनत और सूझबूझ से समाप्त कर सकते हैं लेकिन हम उसके लिए भी दूसरों से शिकायत करते रहते हैं। अगर किसी इंसान का वजन ज्यादा है तो वह उसके लिए समस्या है, अगर किसी का वजन कम है तो वह उसके लिए समस्या है, अगर कोई बेरोजगार है तो समस्या है और किसी के पास नौकरी है तो वह नौकरी से मिलने वाला कठिन काम उसके लिए समस्या है और ऐसा इसलिए है जो हमारे पास है हम उसे स्वीकार नहीं करते, हम नकारात्मक दृष्टिकोण से देखते हैं और उसमें भी कमी निकालते रहते हैं और दुखी होते रहते हैं। इस दुनिया में ऐसा कोई इंसान नहीं जिसके जीवन में समस्या नहीं और ऐसा कोई भी दिन नहीं आने वाला जिस दिन हमारी जीवन से सारी समस्या और कमियां समाप्त हो जाएंगी। समस्या तो आखिरी सांस तक हमारे साथ रहने वाली है इसलिए आपको अपनी समस्या को नकारात्मक नहीं बल्कि सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए और उसका समाधान करना चाहिए। समस्या का सामना करने का एकमात्र नियम है कि हमें उस समस्या को स्वीकार करना पड़ेगा और फिर उसके समाधान के लिए उचित कदम उठाना ही पड़ेगा क्योंकि समस्या से बचने का यही एकमात्र तरीका है कि उसका समाधान कर दो। दोस्तों हम उम्मीद करते हैं ये वीडियो आपको अच्छा लगा होगा, धन्यवाद

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