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भीष्म पितामह ने बताया अपने अंत का राज महाभारत की प्रेरणादायक कहानी

महाभारत का युद्ध चल रहा था। कौरवों की तरफ से पितामह भीष्म युद्ध लड़ रहे थे। और पांडवों का साथ भगवान कृष्ण दे रहे थें कौरवों की सेना में हा-हा कार मच जाता, जब अर्जुन का बाण चलता था। रोज शाम जब युद्ध समाप्त होता था तो सब अपने शिविरों में लौट आते थे। पितामह भीष्म भी अपने शिविर में पहुंचते थे और जब भी पहुंचते थे वहां दुर्योधन उन पर आरोप लगाने के लिए तैयार रहता था। पितामह भीष्म जैसे ही अपने शिविर में पहुंचते थे, दुर्योधन उनसे कहता था पितामह मुझे लगता है कि आप पूरी शक्ति से लड़ते ही नहीं हो, ऐसा लगता है कि आप हमारी तरफ से नहीं बल्कि पांडवों की तरफ से युद्ध कर रहे हो। आप पांडवों का बध क्यों नहीं कर देते, रोज शाम को दुर्योधन यही आरोप लगाता था एक दिन पितामह भीष्म वहां पहुंचे तो दुर्योधन ने आते ही आरोप लगाना शुरू कर दिया। पितामह भीष्म भी अब तंग आ चुके थे और उन्होंने गुस्से में प्रतिज्ञा ले ली “मैं गंगा पुत्र भीष्म कल युद्ध भूमि में उतरूंगा और पांडवों का वध कर दूंगा।” इस धरती को निश पांडव कर दूंगा, जैसे ही पितामह भीष्म ने प्रतिज्ञा ली दुर्योधन खुश होने लगा और अपने भाइयों को बताने लगा कि कल तो युद्ध समाप्त हो जाएगा। कल पितामह पांडवों का वध कर देंगे, कोई नहीं बचेगा। हमारे दुश्मन भी नहीं बचेंगे।

यह बात पांडवों के शिविर पहुंची तो पांडवों की पत्नी द्रोपति को भी यह बात पता चली तो उन्हे अनर्थ होने की आशंका हुई और द्रोपति भगवान कृष्ण के पास पहुंची और बोली सखा हमें बचाइए, मेरे पतियों पर संकट आ गया है। पितामह भीष्म ने प्रतिज्ञा ले ली है कि वह पांडवों का वध कर देंगे, इस समस्या का समाधान कीजिए प्रभु। आपकी वजह से यह सारा युद्ध हो रहा है। भगवान कृष्ण ने द्रोपती को समझाया कि यह युद्ध मेरी वजह से नहीं हो रहा है, यह युद्ध हो रहा है हर किसी के अपने अपने कर्म की वजह से हो रहा है, रही बात समस्या के समाधान की तो समस्या का समाधान जरूर मिलेगा। भगवान कृष्ण ने द्रोपति को एक समाधान बताया चलो कि भीष्म पितामह के शिविर में चलते हैं और भगवान कृष्ण जब वहां पहुंचे उनके शिविर के बाहर खड़े हो जाते हैं, द्रोपति को अंदर भेजा। उस वक्त भीष्म पितामह अपने ध्यान में मग्न थे वहां जाकर द्रोपति ने भीष्म पिता को प्रणाम किया, जैसे ही द्रोपति ने कहा “प्रणाम पितामह”  भीष्म पिता ने बिना देखे ही कहा अखंड सौभाग्यवती भव और जब उन्होंने देखा तो सामने द्रोपति खड़ी हुई थी। वे संकट में पड़ गए थे और कहा द्रोपती तुमने यह क्या करवा दिया थोड़ी  देर पहले ही मैंने यह प्रतिज्ञा लिए कि मैं पांडवों का वध करूंगा। अब  अपने मुख से आपको आशीर्वाद दे दिया। मैं तो बड़े धर्म संकट में पड़ गया हुं। यह तुमसे किसने करवाया तुम तो यहां नहीं कर सकती। द्रोपती ने कहा आप ठीक कह रहे हो पितामह मैंने नहीं श्री कृष्ण ने करवाया।

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पितामह भीष्म ने भगवान कृष्ण को अंदर बुलाया और प्रणाम करके बोले वासुदेव तुमने यह क्या करवा दिया मेरी प्रतिज्ञा को मेरे ही बचन से तुड़वा दिया। मेरी समस्या का समाधान कीजिए। भगवान कृष्ण ने कहा पितामह आपको खुद मालूम है कि आपकी समस्या का समाधान क्या है? इसके बाद पितामह ने पांडवों को बुलवाया। पांडवों से पितामह भीष्म ने वचन ले लिया कि मेरी बात तुम्हें माननी होगी और पांडवों ने कहा ठीक है। पितामह बोले अर्जुन कल तुम मेरा बध करोगे और अर्जुन ने कहा मैं आपका बध कैसे कर सकता हूं पितामह। भीष्म ने कहा कि कल तुम्हें मेरे प्राण लेने होंगे और यह काम तुम्हें करना होगा, तो अर्जुन ने कहा जो आज्ञा पितामह लेकिन मैं आपका बध कैसे कर सकता हूं। मैं तो आपके सामने कमजोर हूं। पितामह भीष्म ने कहा तुम बात तो ठीक कह रहे हो जब मैं अपनी पूरी ताकत से लडूंगा तो महादेव के अतिरिक्त मुझे कोई नहीं हरा सकता लेकिन एक उपाय है जिससे तुम बच सकते हो। तुम युद्ध में मेरे सामने किसी नारी को लाना। पांडवों ने कहा पितामह युद्ध भूमि में नारी कहां से आएगी। पितामह ने कहा अब यह सब तुम बासुदेव पर छोड़ दो और अर्जुन जब दूसरे दिन युद्ध में अपने रथ पर शिखंडी को लेकर आया और पितामह को बाणों की शैया पर लिटा दिया। भीष्म प्रतिज्ञा भी नहीं टूटी और पांडव भी बच गए।

दोस्तों यह छोटी सी कहानी हमें बहुत बड़ी बात सिखाती है, पहली बड़ी बात यहां सिखाती है कि जीवन में संस्कार सबसे बड़ी चीज है वह पांडवों की पत्नी द्रोपति पितामह भीष्म को प्रणाम करती है और वह आशीर्वाद देते हैं अखंड सौभाग्यवती भव। हमको अपने अपने संस्कार नहीं भूलना चाहिए क्योंकि संस्कार जिंदा रहेंगे तो हम जिंदा रहेंगे और यही काम कौरवों की पत्नियां करती तो कौरव भी जिंदा रहते। दूसरी बडी बात, जिंदगी में हर समस्या का समाधान है इतने बड़े बड़े संकट आए लेकिन महाभारत में हर संकट का समाधान होता गया। दोस्तों संसार में ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान ना हो।

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