रामायण एक ऐसा ग्रन्थ है जिससे हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। जीवन की कई समस्या ऐसी है जो इस ग्रंथ को समझने मात्र से दूर हो जाती। आगे आपके साथ ऐसे ही कुछ प्रेरणादायक प्रसंग के बारे में बात करूंगा कृपया इस पूरे प्रसंगों का अध्ययन अवश्य करें ।
- रामायण कहानी – क्षमा की शक्ति

दोस्तों प्रेरक प्रसंग उस समय का है।जब भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई की और भीषण युद्ध चल रहा था। दूसरे दिन मेघनाथ से लक्ष्मण का अंतिम युद्ध होने वाला था। मेघनाथ अपने पिता की तरह स्वर्ग विजेता था और उसकी भुजाओं के बल पर रावण युद्ध कर रहा था। मेघनाथ एक विकेट योद्धा था, जिसे मार पाना देवताओं के बस में भी नहीं था। मेघनाथ एकमात्र ऐसा योद्धा था जिसके पास ब्रह्मास्त्र, वैष्णव अस्त्र और भगवान शिव का पाशुपतास्त्र तीनों थे। तथा इंद्र को परास्त करने के कारण ब्रह्मा जी ने उन्हें इंद्रजीत की उपाधि दी।
जब सुबह लक्ष्मण भगवान राम से आशीर्वाद लेने गए तो उस समय भगवान राम पूजा कर रहे थे। पूजा समाप्ति के बाद प्रभु श्री राम ने हनुमान जी से पूछा हनुमान अभी कितना समय है युद्ध होने में, तभी हनुमान जी बोले प्रभु अभी तो प्रातः काल है और कुछ समय शेष है। भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा कि लक्ष्मण यह पात्र लो और भिक्षा मांग कर लाओ। और भगवान राम ने कहा लक्ष्मण जो तुम्हें पहला व्यक्ति मिले उसी से भिक्षा मांग लेना। भिक्षा की बात को सुनकर सभी आश्चर्य में पड़ गए कि आशीर्वाद की जगह भिक्षा। लेकिन लक्ष्मण भगवान राम की आज्ञा को नहीं डाल सकते थे और उन्हें जाना पड़ा। जब लक्ष्मण भिक्षा मांगने निकला तो उसे सबसे पहले रावण का एक सैनिक मिल गया और भगवान राम की आज्ञा के अनुसार जो भी कोई पहला व्यक्ति मिले उसी से भिक्षा मांगनी थी। एक बार तो लक्ष्मण ने सोचा कि यदि भाइयों की आज्ञा ना होती तो मैं इस सैनिक को यही मार देता लेकिन लक्ष्मण आज्ञा अनुसार उस सैनिक से भिक्षा मांग लेता है। उस सैनिक में अपनी रसद में से कुछ अन्न लक्ष्मण को दे दिया। लक्ष्मण उस अन्न को भगवान राम को अर्पण कर देता है। उसके बाद भगवान राम ने उसे “विजयी” होने का आशीर्वाद दिया।
अब वहां पर भिक्षा का कारण किसी को नहीं पता था लेकिन कोई पूछ भी नहीं सकता था और यह सब के लिए एक प्रश्न बनकर रह गया। इसके बाद मेघनाथ और लक्ष्मण के मध्य भीषण युद्ध हुआ। लक्ष्मण और मेघनाथ युद्ध रामायण का सबसे भीषण युद्ध था जो 3 दिन और तेरा तक चला। जब मेघनाथ लक्ष्मण को पराजित नहीं कर पाया तो अंत में मेघनाथ ने त्रिलोक की सबसे शक्तिशाली शक्तियों को लक्ष्मण पर चलाया। सबसे पहले ब्रह्मास्त्र चलाया, उसके बाद पाशुपतास्त्र और अंत में नारायण अस्त्र चलाया। इन अस्त्रों की ब्रह्मांड में कोई भी काट नहीं थी यदि यह वस्त्र किसी पर छोड़ दिए जाते तो अपना कार्य पूर्ण करके ही वापस आते। लेकिन मेघनाथ ने देखा के लक्ष्मण ने बड़े ही विनम्र भाव से इन सभी अस्त्रों को सिर झुका कर प्रणाम किया और वे सभी अस्त्र लक्ष्मण को आशीर्वाद देकर वापस लौट आए। मेघनाथ को पता चल गया की लक्ष्मण कोई साधारण मानव नहीं, यह अवश्य ही नारायण का अवतार है और वह जोर जोर से हंसने लगता है की कि उसे मारने के लिए स्वयं भगवान को धरती पर जन्म लेना पड़ा।
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यह सब होने के बाद लक्ष्मण ने श्रीराम का ध्यान करके मेघनाथ पर बाण चलाया और मेघनाथ का सिर कटकर जमीन पर गिर गया और लक्ष्मण की विजय हुई। उसी दिन भगवान राम संध्याकालीन शिव की आराधना कर रही थे। वह भिक्षा वाला प्रश्न अब तक रह गया था। अब हनुमान जी से ना रहा गया और उन्होंने भगवान राम से पूछ ही लिया, प्रभु उस भिक्षा का क्या रहस्य है, रवि भगवान राम मुस्कुराए और बोले हनुमान मैं लक्ष्मण को जानता था वह बहुत क्रोधी है, लेकिन युद्ध जीतने के लिए विनम्रता की आवश्यकता पड़ती है। युद्ध में विजयी वही होता है जो विनम्र होता है।
भगवान राम आगे कहते हैं मैं जानता था मेघनाथ युद्ध में ब्रह्मांड की चिंता नहीं करेगा। वह अवश्य ही दिव्यास्त्रो का प्रयोग करेगा। इन शक्तियों का सामना विनम्रता ही कर सकती है। इसलिए मैंने लक्ष्मण को सुबह झुकना सिखाया। जब एक वीर शक्तिशाली व्यक्ति भिक्षा मांगेगा तो उसमें विनम्रता स्वयं प्रवाहित होती है। जब लक्ष्मण ने मेरे नाम से बाण छोड़ा तब यदि मेघनाथ उस बाण के सामने विनम्रता दिखाता तो मैं भी उसे क्षमा कर देता।
दोस्तों किसी भी बड़े से बड़े युद्ध में अथवा जीवन की युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए विनम्रता और धैर्य का होना अत्यंत आवश्यक है।
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-
“धीरज धर्म मित्र और नारी, आपद काल परखिअहि चारी”
- रामायण कहानी – रामसेतु में गिलहरी का योगदान

दोस्तों आप छोटे बच्चे हैं तो चिंता ना करें अब गरीब हैं तो भी चिंता ना करें जिस भी तरह आप औरों के काम आ सकते हैं वैसा काम करें। अब आपके मन में एक सवाल होगा कि आप छोटे होकर बड़ों की मदद कैसे कर सकते हैं ?
दोस्तों यह कहानी उस समय की है जब भगवान श्री राम समुद्र पार करने के लिए अपनी बानर सेना के साथ पुल का निर्माण कर रहे थे। एक ओर पूरी सेना पत्थर पर भगवान श्री राम का नाम लिखकर समुद्र में डालकर पुल का निर्माण कर रही थी, श्रीराम भी अपनी सेना का उत्साह, समर्पण और जुनून देखकर बहुत प्रसन्न थे। वहीं दूसरी ओर एक गिलहरी छोटे-छोटे कंकड़वा मिट्टी ले जाकर पुल के ऊपर डाल रही थी। यह दृश्य देखकर मजाक बनाते हुए बोला कि तुम इतनी छोटी हो, समुद्र से दूर रहो, कहीं ऐसा ना हो कि तुम इन्हीं पत्थरों या सैनिकों के पैरों के नीचे दब जाओ।
यह सुनकर गिलहरी बहुत दुखी हुई परंतु अपना कार्य निरंतर करती रही। इसके पश्चात भगवान श्रीराम की नजर गिलहरी पर पड़ी और उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि गिलहरी भी कितनी निष्ठा से अपना कार्य कर रही है। तभी भगवान राम ने हनुमान जी से कहा कि इस गिलहरी को मेरे पास लेकर आओ। तभी हनुमान जी उस गिलहरी को राम के पास लेकर आए। भगवान श्रीराम ने उस गिलहरी से पूछा यह तुम क्या कर रही हो, मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा। यदि तुम सैनिक के पैरों के नीचे दबकर मर जाती तो, तब लहरी ने अपने मजाक की बात कही और कहा कि प्रभु आप लंका पर चढ़ाई करने जा रहे हैं और वानर सेना भी आपके साथ युद्ध में शामिल हो रही है, इसलिए मैंने सोचा कि मैं भी भागीदार बनूं।
इसके बाद गिलहरी ने कहा मेरे पास मदद करने के लिए कुछ और नहीं है तथा इतने बड़े-बड़े पत्थरों को उठाने की शक्ति भी नहीं है तब मैंने सोचा कि इन पत्थरों के बीच की खाली जगह में छोटे पत्थर और मिट्टी डालकर भर दूं, जिससे पुल पार करते समय आपके पैरों में पत्थर न चुभे और फुल मजबूत बन जाए।
इसके बाद गिलहरी ने मरने के प्रश्न के उत्तर में कहा कि “मैं सोचूंगी कि नारी जाति की रक्षा और धर्म को बचाने के लिए जो युद्ध लड़ा गया उसमें सबसे पहले मैं काम आई।”
इसके पश्चात भगवान राम ने खड़े होकर कहा और सेना को दिखाया कि गिलहरी ने छोटे कंकड़ पत्थर और मिट्टी गोकुल पर डाला है बे बड़े पत्थरों को जोड़ने का कार्य कर रहे हैं, अगर गिलहरी इन कंकड़, पत्थर, मिट्टी को ना डालती तो यह सारे बड़े-बड़े पत्थर इधर-उधर बिखर जाते तथा पुल बनाने में गिलहरी का योगदान वानर सदस्यों के समान अमूल्य है।
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इसके पश्चात भगवान राम ने गिलहरी की पीठ पर बड़ी स्नेह से हाथ व्यक्ति हुए कहा कि गिलहरी तुम महान हो और लंका विजय में सबसे बड़ा योगदान तुम्हारा है। ऐसा माना जाता है कि आज गिलहरी की पीठ पर जो लकी रहेगी और कुछ नहीं भगवान श्रीराम की अंगुलियों के निशान हैं।
इस कहानी से हमें तीन बातें सीखने को मिलती है-
- अगर आप छोटे हैं तो यह मत सोचिए कि आप कुछ नहीं कर सकती आप जितना कर सके उतना करें। अगर आप समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं तो किसी पैसे या ताकत की जरूरत नहीं होती है, समाज सेवा आप अपनी क्षमता के अनुसार कर सकते हैं।
- दूसरों के कार्य का मजाक नहीं बनाना चाहिए साथ ही दूसरों के द्वारा मजाक बनाए जाने पर आपको अपना आत्मविश्वास नहीं खोना है।
- दुनिया के लाखों पेड़ गिलहरियों की देन है खुराक के लिए बीज जमीन में छुपा देती हैं और उस जगह को भूल जाती है। दोस्तों अच्छे कार्य करिए और भूल जाइए समय आने पर आपको फल जरुर मिलेगा।
3. रामायण कहानी – हनुमान जी की बार-बार असफलता के बाद सफलता की कहानी

यह प्रेरक प्रसंग उस समय का है जब हनुमान जी लंका में सीता माता की खोज कर रहे थे, लेकिन उनको लंका में कहीं भी सीता माता नहीं मिल रही थी। हनुमान जी सीता माता को रावण के महलों, अन्य लंका वासियों के घरों गलियों, रास्तों पर हर जगह खोज रहे थे लेकिन बहुत मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिली। कहीं से भी कोई जानकारी ना मिलने के कारण हनुमान जी थोड़े निराश हो गई थी। हनुमान जी ने सीता माता को कभी देखा नहीं था वे सिर्फ सीता माता के गुणों को जानते थे लेकिन वैसे गुणों वाली स्त्री उन्हें लंका में नहीं मिली।
अपनी इस असफलता की वजह से वे कई तरह की बातें सोचने लगे। उनके मन में विचार आया कि खाली हाथ जाऊंगा तो वानरों के प्राण संकट में पड़ेंगे और मेरे प्रभु श्री राम सीता माता के वियोग में प्राण त्याग देंगे इसके साथ ही लक्ष्मण और भरत भी प्राणों का त्याग कर देंगे, बिना अपने स्वामियों के अयोध्यावासी भी नहीं जी पाएंगे। इस प्रकार बहुत लोगों के प्राणों पर संकट छा जाएगा। यह बातें सोचते सोचते हनुमान जी के मन में एक विचार आया और यह विचार आते ही हनुमान जी एक नई ऊर्जा से भर गए। हनुमान जी ने अपनी अब तक की लंका यात्रा की समीक्षा की और फिर एक नई ऊर्जा के साथ खोज शुरू की। हनुमान जी ने सोचा अभी तक मैंने ऐसे स्थानों पर सीता माता को ढूंढा है जहां राक्षस निवास करते हैं, ऐसी जगह खोज करनी चाहिए जहां आम राक्षसों का प्रवेश वर्जित हो। इसके बाद हनुमान जी ने रावण के बयानों और राज महल के आसपास की जगह पर सीता माता की खोज शुरू कर दी। तभी उन्हें एक राम भक्तों की कुटिया दिखाई दी जिसमें रावण का छोटा भाई विभीषण भगवान राम के भजन गा रहा था और उनकी पूजा कर रहा था। इसके बाद हनुमान जी विभीषण को सब कुछ बताते हैं, तो विभीषण हनुमान जी को सीता माता का पता बता देते हैं। इस प्रकार हनुमान जी की बेटी सीता माता से हो पाई । अतः हनुमान जी के एक विचार ने उनकी असफलता को सफलता में बदल दिया।
इस कहानी से हमें सीखना चाहिए कि जब बार-बार असफलता हमारे हाथ लग रही हो तो हमें भी हनुमान जी की तरह प्रभु श्री राम का नाम लेकर एक बार फिर से कोशिश करनी चाहिए आपको सफलता जरूर मिलेगी। आपको अपने जीवन में कभी भी निराश नहीं होना है अगर आप में उत्साह है तो आपको कोई ना कोई मार्ग जरूर मिल जाएगा जैसे हनुमान जी को विभीषण जी मिल गए।
4.रामायण कहानी – हनुमान और अहिरावण की कहानी
जब भगवान राम और रावण का युद्ध चल रहा था तथा रावण को यह आभास हो गया कि अब मैं इस युद्ध को नहीं जी सकता तब उसने छल से राम और लक्ष्मण को बंदी बनाने की कोशिश की और वह इसमें सफल भी हुआ। इसके लिए उसने अपने भाई अहिरावण को आदेश दिया की राम और लक्ष्मण को बंदी बनाकर पाताल लोक में ले जाए तथा उनकी बलि दे दे। अहिरावण बहुत मायावी तथा चतुर्थ उसने भगवान राम की सेना में प्रवेश किया और विभीषण का रूप धारण किया। इसके बाद वह सबकी नजरों से भगवान राम और लक्ष्मण को चुरा कर पाताल लोक में ले गया। उसे कोई पहचान नहीं पाया क्योंकि वह विभीषण के वेश में था । जब यह बात विभीषण को पता चली तो उसने हनुमान जी को बताया । इसके बाद हनुमान जी भगवान राम और लक्ष्मण की खोज में निकल पड़े और पाताल लोक में जा पहुंचे। बहुत मेहनत करने के बाद हनुमान जी को उनका कोई अता पता नहीं चला। जब भी थक हार कर एक पेड़ के नीचे बैठ गई तब उस पेड़ पर बैठे पक्षी आपस में बात कर रहे थे कि आज इंसान का मांस खाने को मिलेगा। तभी हनुमान जी समझ गए और भगवान राम और लक्ष्मण को दुष्ट अहिरावण की कैद से मुक्त कराया और अहिरावण का अंत किया।
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दोस्तों इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है की प्रकृति प्रत्येक चीज का संकेत देती है उसी प्रकार सफलता भी संकेत देती है। केवल उन संकेतों को समझने की जरूरत है।
5. रामायण कहानी – रावण से सीखी जाने वाली तीन बातें

राम और रावण में केवल इतना अंतर था कि रावण को ज्ञान का अभिमान था और प्रभु श्री राम को अभिमान का ज्ञान था।
रावण एक ऐसा व्यक्तित्व था जिसे कुछ लोग सही तो कुछ लोग गलत मानते हैं। रावण का अहंकार और उसका चरित्र ही रावण को गलत बनाता है। रावण महान पंडित और ज्योतिषी, इसके साथ ही वह शिव का परम भक्त था जिसने शिव तांडव की रचना की थी। इस प्रसंग में रावण की कुछ ऐसी बातें जिनसे सीख कर हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं क्योंकि सीखा तो कहीं से भी जा सकता है।
बात उस समय की है जब भगवान राम और रावण के मध्य भयानक युद्ध हुआ और युद्ध में रावण धराशाई हो गया वह मरणासन्न अवस्था में अपनी अंतिम सांसे गिन रहा था, तब भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा लक्ष्मण, इस संसार से नीति, राजनीति और शक्ति का महान पंडित विदा ले रहा है। तुम उसके पास जाओ और उससे जीवन की कुछ ऐसी शिक्षा ले आओ जो तुम्हें कोई और नहीं दे सकता।
भगवान राम की बात को सुनकर पहले तो लक्ष्मण जी को आश्चर्य हुआ लेकिन वह श्रीराम का आदेश टाल नहीं सकते थे इसलिए लक्ष्मण रावण के पास जाकर सिर के पास खड़े हो गए। लक्ष्मण काफी देर तक रावण किस सिर के पास खड़े रहे लेकिन रावण ने उन्हें कुछ भी नहीं कहा। इसके बाद लक्ष्मण वापस श्री राम के पास गए और प्रभु श्री राम को सारी बातें बताई। तब भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा “जब किसी से ज्ञान प्राप्त करना हो तो उसके चरणों के पास खड़ा होना चाहिए ना कि उसके सिर के पास” यह बात सुनकर लक्ष्मण वापस रावण के पास गया और पैरों के पास खड़ा हो गया तभी रावण ने लक्ष्मण को तीन बातें बताई-
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पहली बात –शुभ कार्य जितना जल्दी हो सके, उसे कर डालना चाहिए और अशुभ कार्य जितना टाला जा सके उसे टाल देना चाहिए, वरना यह जीवन कब समाप्त हो जाए किसी को नहीं पता। मुझे जिंदगी में बहुत से शुभ कार्य करने थे लेकिन उन्हें टालता रहा और प्रभु श्री राम को पहचानने में बहुत देर कर दी और उसका परिणाम यह हुआ कि आज मैं इस हालत में पड़ा हुआ हूं।
- दूसरी बात – शत्रु और रोग को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए मैंने बंदरों और भालुओ को कम आंकने की गलती कर दी और अपने शत्रु राम को साधारण वनवासी होने की भूल कर दी, इसका परिणाम आपके सामने है। मैंने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा था कि मनुष्य और वानर के अलावा और कोई मेरा वध ना कर सके क्योंकि मनुष्य और वानर को मैं तुच्छ समझता था।
तीसरी बात – अपने जीवन का कोई भी राज़ किसी को नहीं बताना चाहिए मैंने अपनी मृत्यु का राज़ अपने भाई विभीषण को बताया और आज मेरी मौत का कारण बन गया इतना कहकर रावण का गला अवरुद्ध हो गया और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।