विश्वास में कितनी शक्ति होती है रामायण का प्रेरक प्रसंग

बात उस समय की है हनुमान जी जब संजीवनी बूटी का पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान राम से कहते है :- आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था, बल्कि मेरा भ्रम दूर करने के लिए भेजा था, और आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मैं ही आपका राम नाम का जप करने वाला सबसे बड़ा भक्त हूँ’
भगवान राम बोले:- वो कैसे…?
हनुमान जी बोले :- वास्तव में मुझसे भी बड़े भक्त तो भरत जी है, मैं जब संजीवनी लेकर लौट रहा था तब मुझे भरत जी ने बाण मारा और में गिरा, तो भरत जी ने न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया । कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर उन्होंने कहा कि यदि मन, वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो, यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हो तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित होकर स्वस्थ हो जाए । उनके इतना कहते ही मैं उठ बैठा । सच में कितना भरोसा है भरत जी को आपके नाम पर

इस प्रसंग से हमें सीख मिलती है कि:- हम भगवान का नाम तो लेते है पर भरोसा नही करते, भरोसा करते भी है तो अपने पुत्रो एवं धन पर, कि बुढ़ापे में बेटा ही सेवा करेगा धन ही साथ देगा ।
उस समय हम भूल जाते है कि जिस भगवान का नाम हम जप रहे है , उन पर हम भरोसा नहीं करते । बेटा सेवा करे न करे पर भरोसा हम उसी पर करते है।

दूसरी बात प्रभु..
बाण लगते ही मैं गिरा, पर्वत नहीं गिरा, क्योकि पर्वत तो आप उठाये हुए थे और मैं अभिमान कर रहा था कि मैं उठाये हुए हूँ मेरा दूसरा अभिमान भी टूट गया ।

इससे हमें शिक्षा मिलती है कि :- हमारी भी यही सोच कि, अपनी गृहस्थी का बोझ को हम ही उठाये हुए है । जबकि सत्य यह है कि हमारे नहीं रहने पर भी हहमार परिवार चलता ही है ।
जीवन के प्रति जिस व्यक्ति की कम से कम शिकायतें है, वही इस जगत में अधिक से अधिक सुखी है।
ये राम नाम बहुत ही सरल सरस मधुर, ओर अति मन भावन है मित्रो – जिंदगी के साथ भी ओर जिंदगी के बाद भी


जय श्री सीताराम जय श्री बालाजी

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