कृष्ण वाणी भाग – 1,अमृत वचन,Krishna Vani,Success Mantra
एक बात हमेशा याद रखना कि उस ईश्वर की अलावा आपके आंसू, दुख और दर्द को कोई भी नहीं समझ सकता। कमान से निकला हुआ तीर और जवान से निकला हुआ शब्द कभी वापस नहीं आता।
एक बात हमेशा याद रखना कि उस ईश्वर की अलावा आपके आंसू, दुख और दर्द को कोई भी नहीं समझ सकता। कमान से निकला हुआ तीर और जवान से निकला हुआ शब्द कभी वापस नहीं आता।
दोस्तों, भगवतगीता और भगवतगीता के ज्ञान पर असंख्य लोगों ने काम किया है। क्या विशेष है इस गीता में अगर कुछ विशेष है तो वो है श्रीकृष्ण, बाकी हम सब…
जय श्री कृष्णा दोस्तों, महाभारत युद्ध के 17-वे दिन का सूर्यास्त होने ही वाला था। अर्जुन के हाथों बाण लगने से जब कर्ण मौत के निकट था तब वह बेहद…
पितामह भीष्म भी अब तंग आ चुके थे और उन्होंने गुस्से में प्रतिज्ञा ले ली “मैं गंगा पुत्र भीष्म कल युद्ध भूमि में उतरूंगा और पांडवों का वध कर दूंगा।” इस धरती को निश पांडव कर दूंगा, जैसे ही पितामह भीष्म ने प्रतिज्ञा ली दुर्योधन खुश होने लगा और अपने भाइयों को बताने लगा कि कल तो युद्ध समाप्त हो जाएगा। कल पितामह पांडवों का वध कर देंगे, कोई नहीं बचेगा।
कर्म करो फल की इच्छा मत करो यह भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं। दोस्तों इस दुनिया में कर्म को मानने वाले लोग कहते हैं भाग्य कुछ नहीं होता…
एक राजा और साधु की कहानी पुराने समय की बात है एक राजा बहुत ताकतवर था। उसने सभी राजाओं को हराकर अपने राज्य के अधीन कर लिया। एक दिन उसके…
बाली के पराक्रम की कथा स्वयं रामायण में लिखी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि वह पहाड़ों से इस तरह खेलता था जैसे कोई गेंद हो, वह पहाड़ों को…
द्वापर के सबसे महान योद्धा पितामह भीष्म, बाणों की शैया पर लेटे सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। धन्य है वह आंखें जो नश्वर के अनश्वर होने का दृश्य देखती रही, धन्य है यह भारत की भूमि जहां पितामह भीष्म जैसे शूरवीर ने जन्म लिया। भीष्म पितामह के चरणों में सादर प्रणाम।
जब हनुमान जी संजीवनी लेकर लौटते हैं तब हनुमान जी भगवान राम से कहते हैं, प्रभु आपने मुझे संजीवनी लेने नहीं भेजा। आपने तो मेरी मूर्छा को दूर करने के लिए भेजा था। आज मेरा यह भ्रम टूट गया कि मैं सबसे बड़ा राम भक्त हूं।
भगवान कृष्ण ने कहा बताइए दाऊ भैया आप क्या पूछना चाहते हैं आप? बलराम जी ने कहा महाभारत के युद्ध में जो भी हुआ, पितामह भीष्म का वध, द्रोणाचार्य, दुर्योधन, दुशासन का वध, तो उचित था परंतु कन्हैया महादानी कर्ण का ऐसा अंत क्यों? वह एक श्रेष्ठ मित्र, महापराक्रमी और महादानी था। जिसने स्वयं की माता कुंती को अर्जुन के सिवाय किसी अन्य पांडव को नहीं मारने का वचन दिया था। अपने कवच और कुंडल जानबूझकर ब्राह्मण वेशधारी इंद्र को दान में दे दिए। ऐसे महान दानवीर में किस कर्म का फल भोगा?